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दुधारू पशुओं

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

पशुओं में कुपोषण की वजह से बांझपन की बीमारियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं। खास कर गोवंश में देखी जा रही है। गोवंश में बांझपन के बढ़ते मामलों के का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। इसका मतलब है, कि पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इस गंभीर समस्या से किसानों के साथ-साथ पशुपालन से संबंधित समस्त संस्थाऐं भी काफी परेशान हैं। सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय वेटनरी कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह ने बताया है, कि व्यस्क पशुओं में कम वजन व जननागों के अल्प विकास से पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी देखने को मिल रही है। जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि इसका मुख्य कारण कुपोषण है। इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विश्व विद्यालय और पशुपालन विभाग द्वारा मेरठ के ग्राम बेहरामपुर मोरना ब्लॉक जानी खुर्द में निशुल्क पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कुलपति डॉ के.के. सिंह एवं पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ अरुण जादौन के निर्देश में हुआ है।

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इस उपलक्ष्य पर परियोजना के मार्ग दर्शक डॉ राजवीर सिंह ने कहा है, कि मादा पशुओं को संतुलित आहार के साथ-साथ प्रोटीन और खनिज मिश्रण जरूर देना चाहिए। जिसकी सहायता से उनकी गर्भधारण क्षमता बरकरार रहे। परियोजना प्रभारी डॉ अमित वर्मा का कहना है, कि पशुओं में खनिज तत्वों के अभाव की वजह से भूख ना लगना, बढ़वार एवं प्रजनन क्षमता में कमी जैसे समय पर गर्मी में ना आना, अविकसित संतानो की उत्पत्ति, दूध उत्पादन में कमी, एनीमिया इत्यादि समस्याऐं आ सकती हैं। बतादें, कि पशुओं को प्रतिदिन 30 - 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर पशु आहार के लिए जरूर देना चाहिए। पशु स्वास्थ्य शिविर में पशु चिकित्सा महाविद्यालय कॉलेज मेरठ के विशेषज्ञों इनमें डॉ. अमित वर्मा, डॉ अरविन्द सिंह, डॉ अजीत कुमार सिंह, डॉ विकास जायसवाल, डॉ प्रेमसागर मौर्या, डॉ आशुतोष त्रिपाठी और डॉ रमाकांत इत्यादि की टीम के द्वारा 157 पशुओं को कृमिनाशक, बाँझपन प्रबंधन, गर्भावस्था निदान, रक्त व गोबर की जाँच जैसी पशु चिकित्सा सेवाएं और तदानुसार मुफ्त दवाएं भी प्रदान की गईं। पशु चिकित्साधिकारी डॉ रिंकू नारायण एवं डॉ विभा सिंह ने पशुपालन के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड तथा सब्सिड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्रदान की। प्रशांत कौशिक ग्राम प्रधान समेत अन्य ग्रामवासियों ने शिविर के आयोजन हेतु कृषि विवि की कोशिशों की सराहना करते हुए धन्यवाद व्यक्त किया।

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

आज हम बात करेंगे कि गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा किस प्रकार का देना चाहिए, जिसके आधार पर वो ज्यादा से ज्यादा दूध का उत्पादन कर सकें, जैसे, गेंहू/मक्के की दलिया और भी किसी दलहनी फसल की दलिया पका कर दिया जाता है, ताकि चारा सुपाच्य रहे और दूध भी ज्यादा दे।

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा (Fodder for milch animals in the absence of green fodder in summer)

गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा दूध बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन देने की क्षमता गर्मियों के तापमान की वजह से काफी कम हो जाती है। सेंटीग्रेड मापन के अनुसार तापमान गर्मियों में लगभग 30 से 45 डिग्री हो जाता है कभी-कभी तापमान इससे भी ज्यादा बढ़ जाता है।जिसकी वजह से पशुओं में दुधारू की क्षमता काफी कम हो जाती है। यदि पशुओं को गर्मियों में हरा चारा दिया जाए, तो या भारी नुकसान होने से किसान भाई बच सकते हैं। पशुओं को हरा चारा देने से दूध उत्पादन में काफी वृद्धि होती है।गर्मियों के मौसम में पशुओं के आहार व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

दूध के लिए जरूरी उन्नत चारा :

unnat chara ke fayde दुधारू पशुओं को साल भर हरा चारा खिलाने से दूध कारोबारियों में वृद्धि होती है। इसीलिए दुधारू पशुओं को हरा चारा देना चाहिए। हरा चारा ना सिर्फ पशुओं के लिए दूध वृद्धि  बल्कि कई प्रकार के विटामिंस की भी पूर्ति करता है। हरे चारे की एक नई लगभग विभिन्न प्रकार की किस्में होती है लेकिन जो किस्में किसान अपने पशुओं के लिए उपयोगी समझता है , वह ज्वार और बरसीम है जो पूर्ण रूप से फसलों पर ही निर्भर होती है। ये भी पढ़े: साइलेज बनाकर करें हरे चारे की कमी को पूरा

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए उत्थान अनाज का चारा

गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा दूध उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
  • गर्मियों के मौसम में पशुओं के तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती हैं। ऊर्जा के लिए पशुओं को जौ , मक्का आदि की आवश्यकता होती है। जिससे कि पशुओं को पूर्ण रूप से ऊर्जा की प्राप्ति हो सके।
  • ध्यान रखने योग्य बातें पशुओं को हो सके, तो आप ज्यादा चारा नहीं दें। क्योंकि चारों की वजह से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।जो कि गर्मियों के मौसम में पशुओं के लिए लाभदायक नहीं होती है। ऐसे में आप चारे की कम मात्रा पशुओं को दें।
  • पशुओं का आहार संतुलित बनाए रखने के लिए पशुओं को आहार के रूप में प्रोटीन ,खनिज विटामिन, ऊर्जा आदि को देना आवश्यक है।

पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए उनको गेंहू/मक्के के चारे देना:

हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा - gehu makka ka chara गर्मियों के मौसम में पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए उनको मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा आदि के चारे देना बहुत ही लाभदायक होता है। क्योंकि गेहूं और मक्का बाजरा आदि में लगभग 35% पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिसे खाकर गाय, भैंस भरपूर दूध की मात्रा का उत्पादन करती है।अगर आप मक्का ,बाजरा, जौ इन तीनों में से किसी एक को भी भोजन के रूप में देना चाहते हैं तो कम से कम आपको 35%भाग देना होगा। जिसे खाकर गाय, भैंस पूर्ण रूप से दुधारू का निर्यात कर सकें। ये भी पढ़े: पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

गाय, भैंस को दलिया खिलाने के फायदे:

मनुष्य हो या फिर पशु दोनों को भोजन पचाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गायों और भैंस को दलिया खिलाने से पूर्ण रूप से ऊर्जा प्राप्त होती है। पशुओं को अपने भोजन को पचाने के लिए ऊर्जा की काफी जरूरत होती है इसीलिए दलिया पकाकर खिलाने से पशुओं को ऊर्जा मिलती हैं। प्रसूति से पहले और बाद में इन दोनों ही अवस्थाओं में पशुओं को दलिया खिलाना बहुत ही लाभदायक होता है। दलिया को बचाने में काफी कम उर्जा लगती हैं।

गाय को मक्का खिलाने के फायदे:

गर्मियों में हरा चारा के अभाव में पशुओं के लिए चारा, सूखा चारा खाता गाय का बछड़ा दुधारु पशुओं में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए मक्का की खली बहुत ही लाभदायक है क्योंकि मक्का में मौजूद पोषक तत्व आसानी से पच जाते हैं। मक्के की खली भिगोने के बाद काफी फूल जाती है जिससे इसका वजन भी काफी बढ़ जाता है। मक्के की खली को भोजन के रूप में देने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की मात्रा में बहुत बढ़ोतरी होता है। इस तरह से हम हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा का इंतज़ाम कर सकते हैं।

दुधारू पशुओं के लिए साल भर हरे चारे का इंतजाम करना:

किसानों के लिए अपने दुधारू पशुओं का पालन करने के लिए साल भर हरे चारे दे पाना बहुत ही मुश्किल होता है। वहीं दूसरी ओर दुधारू पशुओं को चारे के साथ-साथ पौष्टिक दानों की भरपूर मात्रा वह हरे चारे की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता होती है,पशुओं को भोजन के रूप में देने के लिए। हरा चारा न केवल दूध उत्पादन बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है। पशु इसे खाकर विभिन्न प्रकार के रोग से खुद का बचाव करते हैं तथा निरोग रहते हैं। किसान अपने पशुओं को जई, मक्का ,बाजरा लोबिया, बरसीम, नैपियर घास ,मूंग उड़द आदि को हरे चारे के रूप में पशुओं को देते हैं। परंतु यह सभी चारे गर्मियों के मौसम में नहीं मिल पाते और पशु पालन करने वाले निराश होकर अपने पशुओं को सूखा चारा व दाना खिलाने पर पूरी तरह से मजबूर हो जाते हैं। इन सभी स्थिति के कारण पशुओं में दूध देने की क्षमता काफी कम हो जाती है जो किसान भाइयों के व्यापार के लिए काफी नुकसानदायक साबित होती है।

पशुओं के लिए हरा चारा बनाना:

hara chara साइलेज द्वारा हरे चारे का इस्तेमाल किया जाता है। साइलेज बनाने के लिए हरे चारे और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्यानन को अच्छी तरह से मिस किया जाता है। साइलेज की सहायता से पशुओं में दूध देने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। इसकी सहायता से हरे चारे काफी लंबे टाइम तक सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।साइलेज की सहायता से हरे चारों में मौजूद पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं हो पाते तथा और भी पोषक तत्व की बढ़ोतरी होती रहती है। किसान भाई हरे चारे की प्राप्ति के लिए अपनी फसल की कटाई के दौरान हरे चारे को धूप में सुखाकर अच्छे से रख लेते हैं। ताकि सालभर हरा चारा ना मिलने पर वह अपने पशुओं को सूखे हुए हरे चारों का इस्तेमाल कर पशुओं से दूध की प्राप्त कर सकें। इस तरह से हम हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा का इंतज़ाम कर सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट के द्वारा गर्मियों में हरे चारे की उपयोगिता और या किस तरह से पशुओं में दूध की वृद्धि को बढ़ाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट है। तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने सोशल मीडिया और दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।
ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

पशुपालन किसानों का सहायक व्यवसाय है। कृषि में मशीनी युग आने के बाद दुधारू पशुओं के पालन का कार्य किया जा रहा है। इन दुधारू पशुओं के पालने से किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। सर्दियों में दुग्ध उत्पादन और पशुओं की सेहत दुरुस्त रखने के लिए कुछ खास इंतजाम करने होते हैं और कुछ सावधानिणं भी बरतनी होतीं हैं। आइये जानते हैं कि किसान भाइयों को कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी होतीं हें और कौन कौन से उपाय करने होते हैं। 

सर्दियों के आने से पहले ही करें इंतजाम

जिस प्रकार से आम आदमी सर्दियों से बचाव करने के लिए अनेक उपाय करता है उसी प्रकार से किसानों को अपने पशुओं को सर्दी से बचाने का इंतजाम करना होता है। पशुपालक भाइयों को अपने दुधारू पशु गाय, भैंस, बकरी आदि को सर्दी के प्रकोप से बचाने के लिए उनके खाने पीने की खुराक और उनके रहने के स्थान पशुशाला पर विशेष ध्यान देना चाहिये। जिससे वो स्वस्थ रहें और दुग्ध उत्पादन भी कम न हो पाए।

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पशुपालक इस तरह करें पशुओ की देखभाल का प्रबंधन

सर्दियों में पशुओं की तीन प्रकार से देखभाल की जाती है। जो इस प्रकार हैं:-

  1. आवास प्रबंधन
  2. आहार प्रबंधन
  3. स्वास्थ्य प्रबंधन

आवास प्रबंधन

  1. सर्दियों में पशुओं को बर्फीली हवाओं से बचाने के लिए रात के समय खुले में न बांधें। सर्दियों में वर्षा या ओलावृष्टि और धुंध के समय पशुओं को बंद स्थानों पर ही रखें।
  2. पशुओं को बर्फीली हवाओं से बचाने के लिए पशुशाला के रोशनदान, दरवाजों, खिड़कियों को टाट-बोरा से बंद करें । इसके अलावा ज्वार-बाजरा आदि के सूखे पेड़ों की टटिया बनाकर भी इन्हें बंद कर सकते हैं।
  3. पशुशाला में गोबर व मूत्र के निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये। ताकि वहां पर पानी न भरे और सीलन आदि भी न  हो।
  4. पशुशाला में ऐसी व्यवस्था करें कि सर्दियों के दिन में धूप अधिक से अधिक समय तक रहे। सीलन या नमी से बचाव के उपाय करने चाहिये।
  5. पशुओं को बैठने के लिए पुआल का बिछावन डालें। ताकि पशुओं पर जमीन की नमी का असर न पड़े।
  6. पशुओं को शरीर ढकने के लिए जूट के बोरे की झूल ऐसे पहनाएं ताकि उनके शरीर से खिसके नहीं।
  7. गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें और उसे सर्दियों से बचाने के लिए ढंके हुए स्थान पर बिछावन पर रखें।
  8. बिछावन को समय समय पर बदलते रहें ताकि मूत्र या जमीन की नमी से पशु को सर्दी न लग सके।
  9. रात के समय पशुओं को पशुशाला में रखें और धूप निकलने पर पशुओं को धूप में बांधें। धूप लगने से उनके शरीर का रक्त संचार बढ़ता है, जिससे पशुओं में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है तथा दुग्ध उत्पादन की वृद्धि में भी मदद मिलती है।
पशुपालक इस तरह करें पशुओ की देखरेख का प्रबंधन


आहार प्रबंधन

सर्दियों में पशुओं को संतुलित आहार देने से जहां पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, बीमारियों से दूर रहता है। वहीं दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

  1. हरे चारे के साथ संतुलित आहार नियमित रूप से कम से कम एक दिन में तीन बार दिया जाना चाहिये।
  2. संतुलित आहार किस प्रकार बनायें: 100 किलो संतुलित आहार बनाने का फार्मूला इस प्रकार है:-
  1. जौ,गेहूं, मक्का, बाजरा व जई का दलिया 26 किलो
  2. सरसों, बिनौला व मूंगफली की खली 40 किलो
  3. चोकर व दाल चूरी 26 किलो
  4. सादा नमक ढेले वाला 6 किलो
  5. खनिज लवण 2 किलो

इन सबको पीस कर अच्छी तरह मिलायें और पशुओं को नियमित रूप से दें। इस आहार को अपने दुग्ध उत्पादक पशुओं को किस हिसाब से दें। इस बारे में विशेषज्ञों की राय इस प्रकार है :-

  1. ढाई लीटर दूध देने वाली भैंस को एक किलो आहार दें।
  2. तीन लीटर दूध देने वाली गाय को भी एक किलो आहार दें। इसी अनुपात में गायों व भैंसों का आहार बढ़ाते जायें।
  3. इसके अलावा एक से डेढ़ किलो प्रतिलीटर दूध के हिसाब से अतिरिक्त आहार प्रतिदिन देना चाहिये। इससे पशुओं की सर्दी से बचाव में बहुत अधिक मदद मिलती है।
  4. पुष्टाहार के साथ ही पशुओं के पीने के पानी का भी विशेष प्रबंध करना चाहिये। सर्दियों में पोखर, तालाब या टैंक में भरा हुआ बासी पानी पिलाने से बचना चाहिये।
  5. सर्दियों में कम पानी पिलाने से भी पशु के स्वास्थ्य और दुग्ध उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। पशु विशेषज्ञों की राय के अनुसार 24 घंटे में कम से कम 3 बार ताजा व स्वच्छ पानी अवश्य पिलाना चाहिये।

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शिशुओं व गर्भित पशुओं के लिए बरतें सावधानियां

  1. नवजात शिशुओं को खीस जरूर पिलाएं, इससे उनका इम्यून सिस्टम तगड़ा होता है और वे बीमार नहीं पड़ते हैं। 12 घंटे में कम से कम तीन बार खीस पिलाएं।
  2. ब्याने वाले पशुओं को गुनगुना पानी दें, ठंडा पानी देने से बचें।
  3. पशु के शिशुओं को सूखा चारा दें, धूप-छांव की व्यवस्था में विशेष देखभाल करें।

स्वास्थ्य प्रबंधन

पशुओं को सर्दियों से बचाने के लिए स्वास्थ्य का प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण है। सर्दियों के आने से पहले पशुओं के आवास व खान-पान की व्यवस्था अच्छी कर लेनी चाहिये।

  1. सबसे अधिक देखभाल पशुओं के शिशुओं की करनी होती है।
  2. शिशुओं की देखभाल गर्भकाल से ही करें तो उत्तम होगा। ब्याने से पहले गाय व •भैंस को ए, डी, ई विटामिन का इंजेक्शन लगवाना चाहिये।
  3. ब्याने के बाद बच्चे की नाल को 4 इंच काट कर उसे रोगरोधक दवा से धो देना चाहिये तथा इस तरह 4 दिन तक साफ सफाई करते रहना चाहिये ताकि पक न पावे और घाव न बने।
  4. ब्याने के बाद बच्चे की मालिश करके उसकी मां के सामने चाटने के लिए रखें।
  5. शिशु को तत्काल खीस पिलाना चाहिये। उसके खड़े होने का इंतजार नहीं करना चाहिये। 12 घंटे में दो से तीन बाद खीस पिलायें।
  6. सर्दी से जैसे आप अपने शिशु को बचाते हैं उसी प्रकार इन शिशुओं को खास कर छह माह के शिशुओं का विशेष ध्यान रखें वरना उन्हें निमोनिया हो सकता है।
  7. दस दिन बाद पशुओं के शिशुओं को पेट के कीड़े मारने वाली दवा दें तथा उनके खान पान में दूध के अलावा अन्य चीजें शामिल करें।
  8. इसी तरह स्वस्थ पशुओं की सर्दियों में देखभाल करें। कंपकपी आने पर सतर्क हो जायें तथा चिकित्सक से सम्पर्क करें और उपचार करायें क्योंकि ये बुखार आने के लक्षण होते हैं। लापरवाही करने से निमोनिया तक हो सकता है।
  9. पशुओं को सर्दी से बचाने के लिए शाम के समय पशुशाला में अलाव जलायें। अलाव जलाते समय विशेष सावधानी बरतें। अलाव ऐसे स्थान पर जलायें जो पशु की पहुंच से दूर हो। इसके लिए पशु की रस्सी छोटी रखें।

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सर्दियों में जरा सी लापरवाही पड़ सकती है महंगी

  1. पशुओं को सर्दी लगने से पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  2. पशुओं को एक बार सर्दी लगने से पशुपालकों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। एक तो उसका दुग्ध उत्पादन प्रभावित होता है। दूसरा उसके स्वास्थ्य खराब होने के कारण उसके इलाज में पैसा खर्च करना पड़ता है।
  3. गाय-भैंस और बकरी के छोटे बच्चों पर सर्दी का सबसे अधिक असर होता है। इनके प्रति जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इनका बचाव विशेष रूप से करें
  4. कई बार पशुओं के बच्चे सर्दी की चपेट में आने से निमोनिया रोग के शिकार हो जाते है उनको बचाना भी मुश्किल हो जाता है।
सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
पशुओं में थनैला रोग के लक्षण और रोकथाम

पशुओं में थनैला रोग के लक्षण और रोकथाम

थनैला रोग दुधारू पशुओं का महत्वपूर्ण रोग है। यह कई प्रकार के जीवाणुओं के थनों में प्रवेश द्वारा उत्पन्न होता है। यह बीमारी समान्य गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं में पायी जाती है, जो अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता है। इसके अलावा चोट तथा मौसमी प्रतिकूलताओं के कारण भी थनैला हो जाता है। इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता है। जो अतंतः पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है।

थनैला रोग के लक्षण एवं उपाय



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  • रोग के लक्षण दूध में रेशे आना, छिछड़े आना या मवाद आने लग जाना।
  • थानों में सूजन तथा दूध की मात्रा में कमी आना।
  • पशु का दर्द के कारण दूध ना धोने देना।
  • वहीं कुछ पशुओं में थन में सूजन या कडापन के साथ-साथ दूध असामान्य पाया जाता है।
  • कुछ असामान्य प्रकार के रोग में थन सड़ कर गिर जाता है।
ज्यादातर पशुओं में बुखार आदि नहीं होता। रोग का उपचार समय पर न करने से थन की सामान्य सूजन बढ़ कर अपरिवर्तनीय हो जाती है और थन लकडी की तरह कड़ा हो जाता है। कुछ पशुओं में दूध का स्वाद बदल कर नमकीन हो जाता है।


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  • इस अवस्था के बाद थन से दूध आना स्थाई रूप से बंद हो जाता है।
  • सामान्यतः प्रारम्भ में एक या दो थन प्रभावित होते हैं, जो कि बाद में अन्य थनों में भी रोग फैला सकते हैं।

बचाव व रोकथाम

  • दूध निकालने के बाद पशुओ को आधा घंटा खड़ा रखे।
  • दूध निकालने के बाद सभी थनों को जीवाणु नाशक दवा के घोल जैसे लाल पोटाश या सेवलोन में डुबोना है।
  • दूधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित सफाई जरूरी हैं।
  • फिनाईल के घोल तथा अमोनिया कम्पाउन्ड का छिड़काव करना चाहिए।
  • दूध दुहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई लिए लाल पोटाश या सेवलोन का प्रयोग किया जा सकता है।
  • दूधारू पशुओं में दूध बन्द होने की स्थिति में ड्राई थेरेपी द्वारा उचित ईलाज करायी जानी चाहिए।
  • थनैला होने पर तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह से उचित इलाज कराया जाये।
इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

खेती और पशुपालन का साथ चोली दामन का रहा है. बहुत से किसान ऐसे हैं जो फसल उगाने के साथ-साथ पशुपालन से भी जुड़े हुए हैं. इसके अलावा हमारे देश में कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनके पास खेती करने के लिए बहुत ज्यादा जमीन नहीं होती है तो ऐसे में वह अपनी जीविका कमाने के लिए लगभग पूरी तरह से पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं. पशु पालन करने के लिए उन्नत पशुधन जितना ज्यादा जरूरी है उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसानों के पास हरा चारा उपलब्ध रहे. खासकर अगर किसान दुग्ध उत्पादन से अपनी जीविका चलाना चाहते हैं तो उनके पास साल भर  हरे चारे का इंतजाम होना बेहद जरूरी हो जाता है. ऐसे तो हरे चारे के लिए बरसीम,जिरका, गिन्नी, पैरा जैसे कई तो है के चारे इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका पशु ज्यादा से ज्यादा दूध दे तो इसके लिए नेपियर घास को सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है. थोड़े ही समय में यह घास बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और यही कारण है कि इसे’  हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. सबसे पहली अफ्रीका में उगाई जाने वाली यह नेपियर घास भारत में 1912 में पहली बार तमिलनाडु में उगाई गई थी और उसके बाद इस पर कई तरह के शोध करते हुए इसे और ज्यादा  बढ़िया क्वालिटी का कर दिया गया है.

एक बार लगा कर कर सकते हैं 5 साल तक कटाई

नेपियर घास की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है और साथ ही इसके लिए बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत ही नहीं लगती है. एक बार इसे उगाने के बाद 60 से 65 दिन के भीतर इसकी पहली कटाई की जा सकती है और उसके बाद हर 30 से 35 दिन के बीच में आप इस की कटाई जारी रख सकते हैं. यह घास ना केवल आपके पशुओं के लिए अच्छी है बल्कि ये भूमि संरक्षण का भी काम करती है.इसमें प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है. इसे दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. यह भी पढ़ें: हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow) अगर आपके पास चार से पांच पशुओं है तो आप केवल आधा बीघा जमीन में है घास लगाकर उनका अच्छी तरह से पालन पोषण कर सकते हैं.

कैसे करें नेपियर घास की खेती?

अगर आप इस गांव का उत्पादन गर्मियों की धूप और हल्की बारिश के समय में करते हैं तो आपको बहुत अच्छी खासी फसल का उत्पादन में सकता है. गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में यह घास जरा धीमी गति से बढ़ती है इसीलिए किसान जून-जुलाई के महीनों में इसकी सबसे ज्यादा बुवाई करते हैं और फरवरी के आसपास की कटाई चालू हो जाती हैं. नेपियर घास की खेती करते समय हमें गहरी जुताई करते हुए खेत में मौजूदा सभी तरह के खरपतवार को खत्म कर देना चाहिए.  इस फसल से हमें बीज नहीं मिलता है क्योंकि इसे तने की कटिंग करते हुए बोया जाता.

खाने से बढ़ जाती है पशुओं की दुग्ध क्षमता

नेपियर घास एक ऐसी खास है जिसे अगर दलहन के चारे में मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाए तो कुछ ही दिनों में उनके दूध देने की क्षमता 10 से 15% तक बढ़ सकती है. ऐसे में पशुपालक आजकल बढ़-चढ़कर इस फसल का उत्पादन कर रहे हैं ताकि वह ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन के जरिए मुनाफा कमा सकें.